भारत माता की आह
भारत माता की आह
क्या कहूँ ?
कैसे कहूँ ?
किससे कहूँ ?
मैं अपने मन की व्यथा।
कहीं मेरी आँखों से,
आँसू न छलक आए।
कहीं इस दु:खी मन से ,
आह न निकल जाए।
रक्त रंजित थी मेरी धरती,
तब भी और अब भी।
गैरों ने खून बहाया पहले,
अब करते हैं मेरे अपने भी।
आज खंजर मुझ पर चला रहे हैं,
क्या ये रुकेंगे कभी ?
मुझको माता कहने वाले,
खो गए बच्चे सभी।
चुप रहूँ ?
कब तक रहूँ ?
कैसे रहूँ ?
अब नहीं ऐसी मेरी अवस्था।
कहीं इस चुप्पी से ,
मेरा दु:ख न बढ़ जाए।
कहीं इस दु:खी मन से,
आह न निकल जाए।