वह कौन?
वह कौन?
अपने हृदय के अंतः स्थल में
छिपा ली थी कभी मैंने -
एक पहचान,
एक मुस्कान।
साल दर साल अनेक परतें
बिछाई थीं उस पर मैंने -
रस्मों की,
रिवाजों की।
उसका नाम न आए होठों पर
यह कसम उठाई थी मैंने -
कर्म से,
धर्म से।
न लौट कर देखा उसे मन भर
न ही याद किया मैंने -
वह कौन,
मैं मौन।

