अभिमन्यु के उद्गार
अभिमन्यु के उद्गार
माँ सुभद्रा को पिता अर्जुन से मिलाया,
हे कृष्ण! आपका अभिनन्दन।
माँ द्रौपदी की लाज को सभा में बचाया,
हे कृष्ण! कृतज्ञ अंतर्मन।
सारथी बन पिता अर्जुन का रथ चलाया,
हे कृष्ण! आपका वंदन।
गर्भ में ही मुझे चक्रव्यूह भेदन सिखलाया,
हे कृष्ण! आभार भगवन।
छः द्वार भेदे, सप्तम पर अपनों ने गिराया,
हे कृष्ण! हुआ विह्वल मन।
क्यों मैंने सच्चाई से न आपको बुलाया,
हे कृष्ण! यह मेरा क्रंदन?
क्या था सप्तम द्वार पर मुझमें 'मैं ' समाया,
हे कृष्ण! करूँ स्वयं से प्रश्न?
कदाचित मुझे मेरे ही 'मैं ' ने हराया,
हे कृष्ण! छूटा श्वासों का बंधन।
मुक्त आत्मा ने गौ लोक का पथ अपनाया,
हे कृष्ण! हुए आपके दर्शन।
नमन। आपको नमन।
