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Purnika Aggarwal

Romance Tragedy Fantasy

4.7  

Purnika Aggarwal

Romance Tragedy Fantasy

हवा

हवा

2 mins
415


यह हवा मुझे छेड़ रही आज,

याद दिला रही वो हमारी वाली शाम,

ना किसी चीज़ की जल्दी ना देरी,

सब स्थिर था, जैसे नहीं कोई काम !


चाँद ज़्यादा सफ़ेद मैं ज़्यादा खुश,

उस शाम का अंधेरा थोड़ा ज़्यादा काला

बूँदें बनी मदिरा, मौसम में मदहोशी,

पहले बस बाँवरि थी अब बनाया बावला !


साँस गले से नहीं उतरा उस दिन, 

देह से रूह माई चक्कर खा रहा,

बिखरे पड़े पत्ते पसंद आ रहे,

वो पल प्यारा मुझे सब भा रहा ! 


वो बेरंगा आसमान रंगीन लगा,

दिल ने गाना चाहा मुँह ख़ामोश रहा,

वो हवा हौले हौले क़रीबियाती रही,

जी जग रहा जो बरसों से बेहोश था !


हवा थी मगर मुझे तुम लगे वो,

क्यूँकि वो आकर लिपटती जा रही,

हल्का सा छूकर, कानो में कुछ कहकर

अंदर ही अंदर सिमटती जा रही !


तुमसे मिलकर अक्सर नज़रें झुकाते है,

हवा से भी नज़रें नहीं मिला पाये,

उस शाम की सुबह मैं नहीं चाहती थी,

लगा वही रहें और कहीं ना जाएँ !


चार दीवारें नहीं तेरा साथ घर था,

घर जाने की बात पर ही ‘पर’ था,

ख़ुदा से दुआ मैं भी माँगती हूँ,

पर मेरे लिए तू सबसे ऊपर था !


कभी गाल चूमती कभी देह सिकोड़ती,

उसके होने से तेज़ झनझनाहट होती,

हवा के ना होने से साँसे रुकती,

पास नह हो कुछ पल घबराहट होती !


महका मौसम मैं मनचली ऐसे में,

उनका असल में आना ग़ज़ब ढा गया,

वो पास आए हवा तेज हुई,

पर शाम का कालापन गहरा गया !


उन्होंने हवा में रिश्ता तोड़ा हवा हुए,

साँसे ना अटकी ना रुकी, थमने लगी,

वो बहती सी हवा कहीं चली गयी,

और फिर तेज़ बारिश होने लगी !


बहुत तेज़ बारिश होने लगी !!


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