हवा
हवा
यह हवा मुझे छेड़ रही आज,
याद दिला रही वो हमारी वाली शाम,
ना किसी चीज़ की जल्दी ना देरी,
सब स्थिर था, जैसे नहीं कोई काम !
चाँद ज़्यादा सफ़ेद मैं ज़्यादा खुश,
उस शाम का अंधेरा थोड़ा ज़्यादा काला
बूँदें बनी मदिरा, मौसम में मदहोशी,
पहले बस बाँवरि थी अब बनाया बावला !
साँस गले से नहीं उतरा उस दिन,
देह से रूह माई चक्कर खा रहा,
बिखरे पड़े पत्ते पसंद आ रहे,
वो पल प्यारा मुझे सब भा रहा !
वो बेरंगा आसमान रंगीन लगा,
दिल ने गाना चाहा मुँह ख़ामोश रहा,
वो हवा हौले हौले क़रीबियाती रही,
जी जग रहा जो बरसों से बेहोश था !
हवा थी मगर मुझे तुम लगे वो,
क्यूँकि वो आकर लिपटती जा रही,
हल्का सा छूकर, कानो में कुछ कहकर
अंदर ही अंदर सिमटती जा रही !
तुमसे मिलकर अक्सर नज़रें झुकाते है,
हवा से भी नज़रें नहीं मिला पाये,
उस शाम की सुबह मैं नहीं चाहती थी,
लगा वही रहें और कहीं ना जाएँ !
चार दीवारें नहीं तेरा साथ घर था,
घर जाने की बात पर ही ‘पर’ था,
ख़ुदा से दुआ मैं भी माँगती हूँ,
पर मेरे लिए तू सबसे ऊपर था !
कभी गाल चूमती कभी देह सिकोड़ती,
उसके होने से तेज़ झनझनाहट होती,
हवा के ना होने से साँसे रुकती,
पास नह हो कुछ पल घबराहट होती !
महका मौसम मैं मनचली ऐसे में,
उनका असल में आना ग़ज़ब ढा गया,
वो पास आए हवा तेज हुई,
पर शाम का कालापन गहरा गया !
उन्होंने हवा में रिश्ता तोड़ा हवा हुए,
साँसे ना अटकी ना रुकी, थमने लगी,
वो बहती सी हवा कहीं चली गयी,
और फिर तेज़ बारिश होने लगी !
बहुत तेज़ बारिश होने लगी !!