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Vaidehi Singh

Abstract Fantasy

4.7  

Vaidehi Singh

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कृष्ण के हाथों अबीर-गुलाल

कृष्ण के हाथों अबीर-गुलाल

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इन्द्रधनुषी रंगों में रंगा है सारा गगन, 

बरसाना वृंदावन में हर कोई हैं कृष्ण में मगन।

आगे राधिका पीछे है यशोदा का लाल, 

आज सब पर उड़ता कृष्ण के हाथों अबीर- गुलाल। 


कृष्ण रंग देते सखियों को बार -बार श्यामल, 

रूठी सखियाँ बस मल-मलकर धोतीं अपना अंग, लेकर जल। 

आज गाँव का हर व्यक्ति है खुशहाल, 

सब पर लगता कृष्ण के हाथों अबीर-गुलाल। 


सखियाँ भी योजना बनातीं, कृष्ण को घेरकर रंगों में भिगातीं, 

नज़र ना लगे तो काला टीका भी लगातीं। 

सफल हुआ कृष्ण के लिए बिछाया सखियों का जाल, 

क्योंकि आज सबको मला कृष्ण ने अबीर-गुलाल। 


मइया हाथ में माखन की मटकी लिए कृष्ण की प्रतीक्षा में अधीर, 

रंगे हुए यशोदा लाल आते दिखते दूर से, पोंछते हुए अपने मुख से अबीर। 

मईया बस खिलखिलातीं, देखकर कृष्ण के रंगे मुख का हाल, 

और पूछतीं, "किस - किस पर डाला लल्ला ने अबीर-गुलाल? 


कृष्ण भी मुस्कराकर बताते सारा वृत्तांत, 

" सब बड़ा परेशान करते हैं, विश्राम के लिए भी नहीं देते एकांत। 

मैं किसीको क्या रंगता, सबने मुझीपे लगा दिया सारा गुलाल, 

आपका नन्हा सा कान्हा कैसे लगा सकता था किसीको अबीर-गुलाल?"


मइया स्नेह से मुख साफ़ कर माखन खिलातीं, 

बड़े प्रेम से कृष्ण का माथा सहलातीं। 

यशोदा के प्रेम में आज पूरे रंग गए यशोदा के लाल, 

जो उड़ा रहे थे दिन भर सभी पर अबीर-गुलाल। 


कोरी-कोरी राधा अब भी प्रतीक्षा में अपने श्याम की, 

कहती, "मुझे छोड़ हर एक कन्या रंगी है गाम की। "

तभी कमल की पांच पंखुड़ियां छूतीं राधा के गाल, 

पीछे मुड़कर देखा तो कृष्ण खड़े हाथ में लिए अबीर-गुलाल। 


कृष्ण कहते, " मत रूठो सखी, मैं आ गया, तुम संग होली खेलने, 

जानती नहीं तुम कितने षड्यंत्र पड़े थे झेलने। "

राधा कहतीं, " खूब जानती हूँ मैं तुम्हें", और रंग देतीं कृष्ण के गाल, 

और बिखर जाता सारे गगन में अबीर-गुलाल। 


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