ओ नारी! तू खड़ी हो जा।
ओ नारी! तू खड़ी हो जा।
ओ नारी ! अब तू मत झुक, खड़ग हाथ ले बढ़ जा,
तुझे दबाने वाले के सीने में शूल सी गड़ जा।
तुझपर लगी पाबंदियों से बड़ी हो जा,
ओ नारी ! अब तू खड़ी हो जा।
तू अब शेरनी सी दहाड़,
तुझे सताने वालों का चीर फाड़ दे हाड़।
बुराई के हौसलों से बड़ी हो जा,
ओ नारी ! अब तू खड़ी हो जा।
दुशासनों के अट्टहास पर डरकर, मत खो जा,
तू द्रौपदी, अब अपनी कृष्ण भी हो जा।
चीर खींचने वाले बाज़ुओं से तू बड़ी हो जा,
ओ नारी ! अब तू खड़ी हो जा।
नदी बन प्यास बुझाई आजतक, अब सैलाब हो जा,
बहा दे उसको, जिसने तुझे जूतों के स्तर भेजा।
सिर चढ़े अहंकार से तू बड़ी हो जा,
ओ नारी ! अब तू खड़ी हो जा।
मन में स्नेह पर आँखों में लपटें रख,
तुझे मैली करने वाली दृष्टि को दे जलाकर रख।
समाज के डर से तू बड़ी हो जा,
ओ नारी ! अब तू खड़ी हो जा।