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Vaidehi Singh

Action

4  

Vaidehi Singh

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ओ नारी! तू खड़ी हो जा।

ओ नारी! तू खड़ी हो जा।

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ओ नारी ! अब तू मत झुक, खड़ग हाथ ले बढ़ जा, 

तुझे दबाने वाले के सीने में शूल सी गड़ जा। 

तुझपर लगी पाबंदियों से बड़ी हो जा, 

ओ नारी ! अब तू खड़ी हो जा। 


तू अब शेरनी सी दहाड़, 

तुझे सताने वालों का चीर फाड़ दे हाड़। 

बुराई के हौसलों से बढ़ी हो जा, 

ओ नारी ! अब तू खड़ी हो जा। 


दुशासनों के अट्टहास पर डरकर, मत खो जा, 

तू द्रौपदी, अब अपनी कृष्ण भी हो जा। 

चीर खींचने वाले बाज़ुओं से तू बढ़ी हो जा, 

ओ नारी ! अब तू खड़ी हो जा।


नदी बन प्यास बुझाई आजतक, अब सैलाब हो जा, 

बहा दे उसको, जिसने तुझे जूतों के स्तर भेजा। 

सिर चढ़े अहंकार से तू बढ़ी हो जा, 

ओ नारी ! अब तू खड़ी हो जा।


मन में स्नेह पर आँखों में लपटें रख, 

तुझे मैली करने वाली दृष्टि को दे जलाकर रख। 

समाज के डर से तू बढ़ी हो जा, 

ओ नारी ! अब तू खड़ी हो जा।


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