भूल जाती हूँ
भूल जाती हूँ
एक बार पलटने पर, आगे देखना भूल जाती हूँ,
जज़्बातों के सैलाब में कुछ ऐसी धुल जाती हूँ।
तुम्हें ढूँढतीं मेरी नजरों को मैं भी खल जाती हूँ,
तुम्हारी गैर मौजूदगी बार-बार भूल जाती हूँ।
तुम्हें अपना समझने की भूल का अंजाम आज भी परेशान करता है,
तुम्हीने आँखों में पानी भरा, तुम्हारे ही कंधों पर बहाने का मन करता है।
तुम सितारा, मैं रात काली, तुम्हीं में घुल जाती हूँ,
पर मुझे तुमसे दूर करने सहर भी आएगी, ये भूल जाती हूँ।
रातों में बहती हवाओं में तुम्हारी आवाज़ गूँजती रहती है,
पर मैं समझ नहीं पाती, मुझसे क्या कहती है!
उन आवाज़ों को सुन मन में चुभे सिर्फ शूल पाती हूँ,
न जाने क्यों, मैं गुलाब के कांटों को भूल जाती हूँ?
तुम्हारे नाम की आदत हो गयी है ज़ुबान को,
कौनसी कहानी से समझाऊँ इस मन नादान को?
बस, चाहत की किताब पर बन धूल जाती हूँ,
उसमें तुम्हारे साथ अपना नाम लिखना भूल जाती हूँ।
तुम्हें दूर से देखने की हिम्मत जुटाती हूँ,
पर एक कदम बढ़ाते ही सारी हिम्मत खर्च पाती हूँ।
तुम्हें बार-बार याद करके खुशी से फूल जाती हूँ,
सबकुछ याद रखकर भी तुम्हें भूलना भूल जाती हूँ।

