सारी रातें
सारी रातें
कश्ती डूबाई उम्मीद की, पतवार खोकर,
नाम लेकर, आँखें सुखाई रो-रोकर।
अनसुनी पुकारों से भरी मेरी बातें,
गूँजती सिर्फ मेरे कानों में सारी रातें।
किसीके ख्यालों के तपते अंगारे मेरा मन सहलाते,
जो सारे ज़माने में मरहम है कहलाते।
अनदेखे घाव इन आँखों को दिख ही नहीं पाते,
पर जलकर सताये मुझे सारी रातें।
एक नाम से सिल गई ज़िंदगी, पता नहीं चला,
उन टाँकों ने ही सबसे ज़्यादा मुझे छला।
मन पर भारी ये सारी बातें,
के सुई ले, धागे उधेड़ने में लगा दीं सारी रातें।
रोशनी में चौंधिया जाती हैं आँखें,
और अँधेरों में रोशनी की यादें, लगतीं जैसे तपती सलाखें।
दिन बीत जाते बस पलक झपकाते ,
और नज़ारों की उम्मीद में बीत जातीं सारी रातें।
सारे अँधेरे से दूर, एक दीप जल रहा अब भी,
जलता मिलेगा ये चाहे देखो जब भी।
'कोई' मेरे खाली आसमान में भी बादलों को फैलाते,
इस इंतज़ार में गुज़ारी, इस भीगे मौसम की सारी रातें।
परवाने सा मेरा मन, इस दीप से मिल जाता है,
बुझी आग से भी कुछ ऐसा जल जाता है।
कि भूल नहीं पाता उस दीप से हुई मुलाकातें,
और धुआँ उठता रहता है सारी रातें।