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Akanksha Bhatnagar

Abstract Fantasy

4.5  

Akanksha Bhatnagar

Abstract Fantasy

एक अधूरी कल्पना

एक अधूरी कल्पना

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मैं नहीं लिख सकती नज़्म कोई

और न ही कोई गज़ल तुम्हारी तरह,

पर मैं लिख सकती हूँ तुम्हारे बारे में,

तुम्हारे बालों के घुमाव से लेकर

तुम्हारे पैरों पर खूबसूरती से

उभरती हुई रगों के बारे में ,

मैं लिख सकती हूँ तुम्हारे होठों पर

लगी हुई सिगरेट से निकल

मोहित कर देने वाली महक के बारे में,


लिखा जा सकता है कभी-कभी

इस शून्य से चहरे के पीछे

पनपती अनगिनत उलझनों के बारे में ,

लिखा जा सकता है इन खामोश 

आंखों के पीछे मौजूद 

उठते एक तूफान के बारे में ,

लिखा जा सकता है हर शख़्स की

उस बदकिस्मती के बारे में ,

जो तुम्हारे इर्द-गिर्द होकर भी

पड़ न सके प्रेम में तुम्हारे ,

वो लोग जिन्होंने गुज़ार दिए

अरसे कई सुन तुम्हारे लफ़्ज़ों को बस

पर रह गए परे वो तुम्हारी

आवाज़ के एहसासों से,


वो लोग जिन्होंने देखा ये चेहरा

तो कई दफ़ा

फिर भी पढ़ा नहीं इस चेहरे को कभी ,

उन्होंने देखकर भी नहीं देखा

उस उन्तीस साल के लड़के के होठों पर

आने वाली एक नौ साल के

बच्चे सी मुस्कुराहट को ,

और उस मुस्कुराहट से उन आंखों में

पैदा होने वाली उस चमक को नहीं देखा ,

शायद उन्होंने उन आंखों के नीचे बनने वाली

उन दो लकीरों को भी कभी नहीं देखा

जो बनती हैं उसकी निश्छल

और सच्ची मुस्कुराहट की एकमात्र गवाह ,

ये लोग नहीं देख पाए कुछ भी।


लोग जो दावे करते हैं

तुम्हारे अंदर की गहराइयों को समझने का,

वो लोग ज़िंदा हैं कैसे?

वो मोहब्बत करने वाले

उस गहराई में गिर क्यों नहीं गए,

वो लोग तुम्हारे मस्तिष्क में बैठ

वहाँ से नाप रहे हैं 

तुम्हारे जिस्म की गहराई को बस,

वो लोग उतर ही न सके 

तुम्हारी रूह में कभी ।

तुम्हारे प्रेम में पड़ने वाली लड़की

फिर नहीं हो सकेगी दुनिया में किसी की,

तुमसे किया गया उसका 

दसवाँ इश्क़ भी होगा पहला ही।


तुम्हारे प्रेम से मिलने वाले सुकून की कोई

सटीक कल्पना करना भी संभव नहीं है,

मगर फिर भी कहा जा सकता है कि 

मानो कोई उदास रूह बैठी हो

समुद्र किनारे टिमटिमाते तारों के नीचे,

मानो जैसे सूर्योदय पर हो बस

चहचाहट अनेक चिड़ियों की ,

और मानो ऊँचे पहाड़ों से नीचे

दिखाई देते हों तो बादल बस।

ये नदियाँ और ये आसमाँ मिलकर भी

पूर्ण नहीं कर सकते कल्पना तुम्हारी,

मेरे बाद होगा कोई शख़्स फिर से

जो करेगा ब्रह्माण्ड से भी तुलना तुम्हारी,

वो सुनाएगा इस दुनिया को शायद

तुम्हें मोहब्बत में मिला हिज़्र सारा,

और इन सबके बावज़ूद भी

अधूरा ही रह जाएगा ज़िक्र तुम्हारा।



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