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Akanksha Bhatnagar

Abstract

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Akanksha Bhatnagar

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शर्म ख़ता गर माफ भी हो

शर्म ख़ता गर माफ भी हो

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शर्म ख़ता गर माफ भी हों

खुदमें बीमारी लगती हैं,


हवा से भी हल्की पलकें

पर्वत सी भारी लगती हैं।


कहने वाले खुदको ठीक

नज़र उठाए फिरते हैं,


हमको तो अपनी सांसें

खुद से गद्दारी लगती हैं।


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