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भाग 1 - एक राज हूं मैं...
एक राज हूं मैं, समझ सकते हो तो समझ लो
उलझनों में उलझी उलझन हूं मैं, मुझ में उलझने से पहले सुलझ लो
मेरी बोली सांकेतिक भाषा है, तुम बोल सकते हो तो बोल लो
चिन्हों में तुम चूक जाओगे, खुद को शब्दों से ही तो लो
कोरे कागज पर सफेद स्याही से लिखी हूं, पढ़ सकते हो तो पढ़ लो
यूं बेरंग दुनिया की जिद छोड़ कर, तुम राह बदल के आगे बढ़ लो
मेरे इर्द-गिर्द दीवारों की बाड़ है, तोड़ सकते हो तो तोड़ लो
तुम खुद टूट कर बिखर जाओगे, इससे पहले खुद को जोड़ लो
मुझे खामोश अल्फाज अजीज है, तुम सुन सकते हो तो सुन लो
दाग लगने से अच्छा जिंदगी का दामन, किसी और सुई से बुन लो
मैं खुद में ही गुम हूं कहीं, तलाश सकते हो तो तलाश लो
कहीं खुद ना गुमराह हो जाओ तुम, मुझे जिंदगी से अपनी तराश लो
सोचने से सुलझा लोगे मैं इतनी आसान नहीं, फिर भी सोच सकते हो तो सोच लो
खुद ही पहेली बन जाने से पहले, धड़कनों को जरा तुम दबोच लो
मैं संकेत में बंद किताब हूं, तुम खोल सकते हो तो खोल लो
खुद भी तुम कैद हो जाओगे, मेरा ख्याल बहते पानी में घोल लो
मैं मिट्टी का लोहा हूं, हाथ मरोड़ सकते हो तो मरोड़ लो
तुम चोट खा जाओगे, मेरी सलाह मानो राह मोड़ लो
भाग 2 - जरूरत क्या है
तू राज है मैं आवाज हूं, सुनने समझने की जरूरत क्या है
पहले से गर उलझा हूं तुझ में, अब सुलझने की जरूरत क्या है
निगाहों के इशारे काफी हैं, तो कुछ कहने की जरूरत क्या है
चूकेंगे तभी साथ निभाएंगे, तो सही होने की जरूरत क्या है
मैं लिखावट के निशान छूकर समझ लूंगा, पढ़ने की फिर जरूरत क्या है
सफेदी बेरंग नहीं बेदाग है, तो राह बदलने की जरूरत क्या है
दीवार में दोनों महफूज रहेंगे तो, तोड़ने की फिर जरूरत क्या है
टूट भी जाऊं तो समेट लेना, मुझे खुद जुड़ने की जरूरत क्या है
मैं खामोशी में गर एहसास भर दूँ, तो कुछ सुनने की जरूरत क्या है
तेरे दुपट्टे की छांव ही काफी है, दामन बुनने की मुझको जरूरत क्या है
मैं भी घर खो जाऊं तुझ में तो, तुम्हें ढूंढने की मुझे जरूरत क्या है
गुमनाम गली में हम टकरा ही जाएंगे, तुझे छोड़ने की मुझे जरूरत क्या है
मुझे भी उलझने अजीज है, तो हल सोचने की जरूरत क्या है
मंसूबा ही मेरा गर उलझने का हो, तो धड़कने दबोचने की जरूरत क्या है
बंद किताब मैं गर आर पार पढूं, तो खोलने की फिर जरूरत क्या है
मुझे कैद होने की चाहत है गर, तो ख्याल भूलने की जरूरत क्या है
मैं साथ देने हाथ थामने आया हूं, तो बेवजह मरोड़ने की जरूरत क्या है
मुझ में खौफ नहीं खुमार है, तो राह मोड़ने की जरूरत क्या है.....!
