वक़्त के हिसाब से
वक़्त के हिसाब से
जिन लोगों को मैं खास चाहती नहीं हूँ
लेकिन चाहती हूँ की वह रहे मेरी जिंदगी में
ताकि देख सकूँ मैं
वक़्त के हिसाब से बदलते लहजे
परख सकूँ मैं
बनावटी बेदाग चरित्र की हजारों चोंटे
वक़्त के हिसाब से बदलते मुखौटे
सीख सकूँ मैं...
वक़्त के हिसाब से पलटते हैं ढंग
लोगों के बेतहाशा बदलते हैं रंग
सफर में यूँ ही छूटते टूटते हैं सारे संग
नाप सकूँ मैं...
कुछ खर्च हुए कुछ जाया हुए सारे पल
दिल के जख्मों के गहरे तल
वक़्त के हिसाब से अपनों की गिनती
टूटते बिखरते कुछ सपनों की गिनती
यह देखना..
देख के परखना
परखके सीखना
और सीखके नापना...
और फिर तय करना
लोगों से लोगों के तरीके के अनुसार
मगर अपने तरीके से पेश आने का तरीका
दुनिया की इस बुराई में सलीके से
अपनी अच्छाई को बचाने का सलीका।
