अपने ही हाथों
अपने ही हाथों
अपने ही हाथों से कर दिया धरती का दमन,
तरक्की के चक्कर में दानव बन बैठा मानव-मन,
अब धरती धधक रही है उनके ही बिछाए बारूद से,
अब मानव बन नादान ढक रहा है उस पर मखमली चादर से,
बरस रहा है बारूद बन कर अंगार धरा पर हो रहा अब परेशान,
सूखा-सुना पड़ा है खेत-खलिहान परेशान है सब किसान,
मजदूरों की भी बड़ी है मजबूरी यहां पर,
कोरोना ने फैलाया है अपना कहर धरा पर,
क्योंकि.........?
मानव बन मान बैठा है अब अपने-आपको को भगवान,
तभी तो हो गई है कुदरत भी क्रोधित इंसान के रहन-सहन,
ऐसी तरक्की भी क्या कर ली इंसान-इंसान से दूरी ही दवा बन गई है?
नंगा नाच कर रही भूख मजदूरों के घर-आंगन,
मजदूरों को भूख से या फिर कोरोना की महामारी,
इनको तो मरना हर हाल में ही है,
रोजी-रोटी के चक्कर में नापी है सड़कें सारे हिंदुस्तान की है,
आम जनता की भीड़ कोरोना को देती है आमंत्रण,
नेताओं की रैलीयों में देते है कोरोना को मोड़,
कैसी ये मंत्री गण की लीला है हर मोड़ पर,
चारों तरफ देखो बस षड्यंत्र ही षड्यंत्र आता नजर,
असमंज-अचम्भित जनता यह सब सह रही है,
नेता हवेली में अपने आराम फरमा रहे है,
जनता सड़कों पर डर-डर के कोरोना की लहरों का
और
भूख का कर रही संघर्ष यहां !!