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वैष्णव चेतन "चिंगारी"

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वैष्णव चेतन "चिंगारी"

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गुलाब का कत्ल नहीं कर सकता

गुलाब का कत्ल नहीं कर सकता

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आज जो डूबे है पश्चिमी हवा के रंग में,

सब चल पड़े है भेड़ चाल संग-संग में ,

जो आज के दिन दिए जा रहें हैं 

गुलाब

प्यार-इश्क को जताने में,

उतरेगा प्यार-इश्क का जुनून जेहन से,

ये दिए हुए गुलाब के फूल मिलेंगे कचरे के पात्र में,

आज के दिन वफ़ा निभाने कि कसमें खाई जा रही है,

सात जन्म कि नहीं जन्म-जन्म की निभाने की है,

कुछ दिन बाद वो अपने घर के किसी कोने में मिलेगी 

फ़ख्त सिसकियों के साथ,

माफ करना यारों.....!

मैं ऐसी झूठी मोहब्बत में,

गुलाब के फूल को डाली तोड़ कर,

प्यार-इश्क के लिए उस मासूम को मौत के घाट नहीं उतार सकता,

ऐसा मैं प्यार-इश्क जता नहीं सकता,

यकीन करो तुम.......!

निभाऊंगा जन्म-जन्म तक मैं 

अपना प्यार,

उस गुलाब का यूँ गला न घोट कर

अपने प्यार की याद में,

एक पेड़ अवश्य लगाऊंगा,

अपने प्यार-प्रेम नयन नीर से बड़ा करूंगा,

ताकि सच्चे प्यार-प्रेम के जोड़े उसकी छांव में बैठा करेंगे,

अपने प्यार-इश्क के सुगन्ध से सारे जग को जगायेंगे !!


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