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Shravani Balasaheb Sul

Abstract

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Shravani Balasaheb Sul

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कुछ ख्वाब अधूरे (भाग 2)

कुछ ख्वाब अधूरे (भाग 2)

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पतझड़ सी विस्मय बहारे, नजर में बसे बेधुंद नज़ारे

दहक-ए-दिल को छेड़ती फुहारे, कुछ ख्वाब अधूरे


गहराई से भी गहरे समंदर, लेहरों की गुस्ताखी के मंजर

बरसते मेघ ज़मीन बंजर, कुछ ख्वाब अधूरे 


रात से भी गहरे अंधीयारे, चाँद से बिछड़े चंद सितारे

जुगनूओं की मोहब्बत के मारे, कुछ ख्वाब अधूरे


फूलों से खुशबुओं की बिछड़न, राहत या दिल की तड़पन

कभी दिल का नादान लड़कपन, कुछ ख्वाब अधूरे


दिल के नगर दिल का कहर, खुदसे खुदका खामोश बैर

आरजूओं का बसेरा खाली शहर, कुछ ख्वाब अधूरे।


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