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Shravani Balasaheb Sul

Abstract Others

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Shravani Balasaheb Sul

Abstract Others

कुछ ख्वाब अधूरे

कुछ ख्वाब अधूरे

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कभी दिल में उतरे, कभी दिल से उतरे

बिखर के फिर उभरे, कुछ ख्वाब अधूरे


हासिल तो शामत, गर ना मिले तो शामत

गर बेपर्दा तो जिल्लत, कुछ ख्वाब अधूरे


उन्हें चाहो तो खाली, ज़िद छोड़े तो दिल सवाली

मन की छाया सांवली, कुछ ख्वाब अधूरे


बिसराए तो बेचैन, याद आए तो उजाड़े रैन

अश्कों के सूखे नैन, कुछ ख्वाब अधूरे


रूबरू तो हिचकिचाहट, पर्दा करें तो दर पे आहट

पल दो पल की जगमगाहट, कुछ ख्वाब अधूरे


कभी मुकम्मल मिसरे, कभी शेर अधूरे

कभी एक लफ्ज में पूरे , कुछ ख्वाब अधूरे 



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