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S.Dayal Singh

Abstract Inspirational

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S.Dayal Singh

Abstract Inspirational

अमर शहीद सरदार उधम सिंह

अमर शहीद सरदार उधम सिंह

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*जन्म स्थान,माता-पिता, नाम*

भारत देश गुलाम था,था अंग्रेजी राज।

गोरे अत्याचार ने,दबा रखी लोक आवाज़।

अविभाजित पंजाब,पटियाला स्टेट गाँव सुनाम।

रेलवे क्रॉसिंग पे वाचमैन,था टहल सिंह किसान।

नारायण कौर पत्नी थी,घर में बेटा मुक्ता सिंह।

26 दिसंबर1899,को जन्मा शेर सिंह।

7 वर्ष की उम्र में,मुकद्दर रूठ गया।

साया बच्चों के सर से,माँ-बाप का उठ गया।

माँ-बाप की मौत से,लगी गहरी सीने चोट।

दोनों भाइयों ले ली,अनाथालय की ओट।

यतीमखाने मुक्ता सिंह, हो गया साधू सिंह।

शेर सिंह का नाम भी,हो गया उधम सिंह।

नींद न देखे बिस्तरा,उम्र न देखे मौत।

1917 में, साधू सिंह हो गया फौत।

अनाथालय में रहते,उधम कर ली10वीं पास।

अधिक समय तक उसको,ये जगह न आई रास।

1918 में उधम,अनाथालय छोड़ गया।

छोटी सी उस उम्र में,बड़े अनुभव जोड़ गया।

*जलियांवाला बाग और उससे आगे*

जलियांवाला बाग की,मैं साखी दूं सुना।

सन 1919 वाली,गई वैसाखी आ।

दूर-दूराज से संगतें,आ पहुंची हुमहुमा।

13 वर्षीय उधम था,जल सेवा रहा निभा।

बच्चे बूढ़े पुरुष औरतें,थे खुशियां रहे मना।

एक फिरंगी अफसर,सेना लेकर पहुंच गया।

घेराबंदी कर सेना ने,रोक लिए सब राह।

जुल्मों-सितम की डायर ने,दी थी हद्द मुका।

तोपों के मुंह खोल दो,डायर किया आदेश।

हुई इकट्ठी भीड़ में, कोई बच न पाए शेष।

भगदड़ इतनी मच गई,वहां लोग गये घबरा।

कई कुएँ में कूद पड़े,कई दी थी जान गंवा।

कुछ थे जख्मी हो गए,कुछ तोपों किये स्वाह।

अंगहीन कई हो गए,ली कुछ ने जान बचा।

उधम अपनी आंखों से,था मंजर देख रहा।

बदला लूंगा डायर से,उसने कसम ली थी  खा।

दांत पीस के रह गया,आंखें हो गई  लाल।

लाल रक्त संग रंजित मिट्टी,शीशी में सम्भाल।

अगले दिन अखबार में,खबर गई थी आ।

अखबार वालों ने डायर की,फोटो दी थी ला।

उधम सिंह अखबार की कतरन,जेब में ली सरका।

राम मुहम्मद सिंह आजाद,बाजू पे खुनवा।

उधम सिंह ने पकड़ ली,आजादी वाली वाट।

राम मुहम्मद सिंह आजाद,अंदर जलती लाट।

राम तखल्लुस हिन्दुआं,मुहम्मद मुस्लमान।

सिंह का मतलब सिख है,आजाद न कभी गुलाम।

*कैक्सटन हॉल और ओ'डायर*

आंखों सपने ग़ैरत वाले,लेकर चल दिया।

सन 1934 में उधम,इंग्लैंड पहुंच गया।

6 साल करता चाकरी,उधम लंदन शहर रहा।

21साल का अरसा,इंतजार में बीत गया।

सन 1940, दिन था 13 मार्च का।

रॉयल सोसाइटी एशिया,बैठक ली बुला।

डायर कैक्सटन हॉल में,देने भाषण पहुंच गया।

हॉल में अगली सीट पर,जा उधम बैठ गया।

डायर चढ़ स्टेज पर,जब भाषण देन लगा।

जलियांवाला बाग में किए,रहा था जुल्म गिना।

उधम सिंह दलेर ने उस पे,दी थी सिसत टिकाय।

तुझे जिन्दा कैसे छोड़ दूं,कर ले लाख उपाय।

गोली मार शैतान को,डायर दिया पार बुला। 

बदला ले अपमान का,उधम दी थी कसम पुगा।

इन्कलाब जिंदाबाद,उधम नारा किया बुलंद। 

हो गया सम्राज्यवाद का,चकनाचूर घमण्ड।

जलियांवाले बाग का,न सूख सकेगा घाव।

आओ तुम फ्रंगियो,अपना पूरा कर लो चाव।

*गिरफ्तारी, मुकदमा और फांसी *

शेर पकड़ फ्रंगियां,किया ब्रेक्सटन जेल में  बंद।

सरकार ने जेल सुरक्षा का,सख्त किया प्रबन्ध।

उधम सिंह की कोठरी पर,पहरा दिया बिठा।

धाराएं सख्त लगा दी,केस कत्ल का दर्ज किया।

हाथों में हथकड़ियां,और क़ैदी वाला भेष।

पैरों में पा बेड़ियां,किया कचहरी पेश।

कहा कचहरी जज ने,ब्यान अपना दर्ज करा।

उधम कहा फ्रंगियो,तुमने भारत लूट लिया।

गोरे तेरे राज में,हम पे हो रहे जुल्म अथाह।

अत्याचारी डायर को,मैं इसलिये मार दिया।

बदले की इस आग में,मैं 21वर्ष जला।

गोरे जुल्मों-सितम से,हिन्दवासी रहे कुरला।

हमारा लहू निचोड़ के,तुम रहे हो ऐश उड़ा।

मारके एक शैतान को,मैंने दिया धर्म निभा।

आम लोग इंग्लैड के,समझूं मैं निर्दोष।

तानाशाह सरकार के,प्रति हमारा रोष।

जलियांवाले बाग का,तुमने किया जो अपमान

गोरी कोर्ट कचहरी का,मैं कैसे करूं सम्मान?

मृत्यु से मुझे डर नहीं,मुझसे मौत रही घबरा।

करके खूब तैयारी,मुझको फांसी दो लटका।

मातृभूमि के वास्ते,गर मैं रस्सा चूम लिया।

और बड़ा सम्मान मेरे लिये,हो ही क्या सकता?

जज ने लिखा फैसला,दी सजा-ए-मौत सुना।

सुनकर जज का फैसला,शेर पड़ा मुस्करा।

31 जुलाई 1940,पेंटोविले जेल।

40 साल 7 माह 5 दिन उम्र, हुआ मौत से मेल।

सात समुद्र पार योद्धा,फांसी दिया चढ़ा।

लाज बचा ली देश की,खुद गया शहीदी पा।

धन्य है वो सूरमा,धन्य उसके मात-पिता।

कैसे हम उस वीर का,सकते हैं कर्ज चुका?

--एस.दयाल सिंह--



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