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S.Dayal Singh

Abstract Inspirational

2.0  

S.Dayal Singh

Abstract Inspirational

अमर शहीद सरदार उधम सिंह

अमर शहीद सरदार उधम सिंह

3 mins
552


*जन्म स्थान,माता-पिता, नाम*

भारत देश गुलाम था, और था अंग्रेजी राज

गोरे जुल्मों-सितम ने,दबा रखी थी लोक आवाज़।

अविभाजित पंजाब,पटियाला स्टेट गाँव सुनाम

रेलवे क्रॉसिंग पर वाचमैन था, टहल सिंह किसान।

नारायण कौर पत्नी थी,घर में बेटा मुक्ता सिंह

26 दिसंबर 1899 को, जन्मा शेर सिंह।

सात वर्ष की उम्र थी,कि मुकद्दर रूठ गया

 माँ-बाप का साया था,जब सर से उठ गया।

माँ-बाप की मौत से,लगी गहरी सीने चोट

दोनों भाइयों ले ली,अनाथालय की ओट।

मुक्ता सिंह का नाम बदलकर, रख दिया साधू सिंह

शेर सिंह का नाम भी,रख दिया उधम सिंह।

नींद न देखे बिस्तरा,उम्र न देखे मौत

1917 में, साधू सिंह हो गया फौत।

यतीमखाने में रहते उधम,कर ली 10वीं पास

ज़्यादा देर ये जगह न, उधम को आई रास।

सन 1918 में उधम सिंह,अनाथालय छोड़ गया

छोटी सी उस उम्र में,बड़े तजुर्बे जोड़ गया।

*जलियांवाला बाग और उससे आगे*

जलियांवाले बाग की,अब मैं साखी दूं सुना

सन 1919 वाली,गई वैसाखी आ।

दूर-दराज से संगतें,पहुंची थी हुम-हुमा

13 वर्षीय उधम सिंह,था जल सेवा रहा निभा।

बच्चे बूढ़े पुरुष औरतें,थे खुशियां रहे मना

एक फिरंगी अफसर,सेना लेकर पहुंच गया।

घेराबंदी कर सेना ने,रोक लिए सभी राह

जुल्मों-सितम की डायर ने,दी थी हद्द मुका।

तोपों के मुंह खोल दो, डायर किया आदेश

हुई इकट्ठी भीड़ में,कोई बच न पाए शेष।

भगदड़ इतनी मच गई,कि लोग गये घबरा

लोग कुएँ में कूद पड़े,कईयों ने दी थी जान गंवा।

कुछ लोग थे जख्मी हो गए,कुछ तोपों ने किये स्वाह

अंगहीन कई हो गए, कुछ ने ली थी जान बचा।

उधम अपनी आंखों से,था सारा मंजर देख रहा

बदला लूंगा डायर से,उसने कसम ली थी खा।

दांत पीस के रह गया,उसकी आंखें हो गई  लाल

लाल खून से भीगी मिट्टी,ली शीशी में सम्भाल।

अगले दिन अखबार में,खबर गई थी आ

अखबार वालों ने डायर की,फोटो भी दी थी ला।

उधम सिंह अखबार की कतरन,जेब में ली सरका

राम मुहम्मद सिंह आजाद,बाजू पे खुनवा।

उधम सिंह ने पकड़ ली,आजादी वाली वाट

राम मुहम्मद सिंह आजाद,अंदर जलती लाट।

राम तखल्लुस हिन्दुआं,मुहम्मद मुस्लमान

सिंह का मतलब सिख है,आजाद न कभी गुलाम।

*कैक्सटन हॉल और ओ'डायर*

आंखों के आक्रोश को, सीने मे दफ़ना 

सन 1934 में उधम सिंह, इंग्लैंड पहुंच गया।

6 साल करता चाकरी,उधम लंदन शहर रहा

21साल का अरसा, इंतजार में बीत गया।

सन 1940, दिन था 13 मार्च का

रॉयल सोसाइटी एशिया,बैठक ली बुला।

डायर कैक्सटन हॉल में,स्पीच देने पहुंच गया

हॉल में अगली सीट पर,जा उधम बैठ गया।

डायर चढ़ स्टेज पर,जब भाषण देने लगा

जलियांवाला बाग में किए,रहा था जुल्म गिना।

उधम सिंह दलेर ने उस पे,दी थी सिसत टिकाय

तुझे जिन्दा कैसे छोड़ दूं,कर ले लाख उपाय।

गोली मार शैतान को,डायर दिया पार बुला

बदला ले अपमान का,उधम दी थी कसम पुगा।

इन्कलाब जिंदाबाद,उधम नारा किया बुलंद 

हो गया सम्राज्यवाद का,चकनाचूर घमण्ड।

जलियांवाले बाग का,न सूख सकेगा घाव

आओ तुम फ्रंगियो,अपना पूरा कर लो चाव।

*गिरफ्तारी, मुकदमा और फांसी *

शेर को किया फ्रंगियां,ब्रेक्सटन जेल में  बंद

सरकार ने जेल सुरक्षा का,सख्त किया प्रबन्ध।

उधम सिंह की कोठरी पे,पहरा दिया बिठा

धाराएं सख्त थोपकर, केस-ए-कत्ल दर्ज किया।

हाथों में हथकड़ियां,और क़ैदीयों वाला भेष

पैरों में पा बेड़ियां,किया कचहरी पेश।

कहा कचहरी जज ने,अपना ब्यान दर्ज़ करा

उधम कहा फ्रंगियो,तुम ने भारत लूट लिया।

गोरे जुल्मों-सितम से,हिन्दवासी रहे कुरला

बदले की इस आग में, मैं 21वर्ष जला। 

हमारा लहू निचोड़ के, तुम रहे हो ऐश उड़ा

मारके एक शैतान को, मैंने दिया धर्म निभा।

आम जन इंग्लैड के,समझूं मैं निर्दोष

तानाशाह सरकार के, विरूद्व हमारा रोष।

जलियांवाले बाग का,तुमने किया जो अपमान

गोरी कोर्ट कचहरी का, मैं कैसे करूं सम्मान ?

मृत्यु का मुझे डर नहीं,मुझसे मौत रही घबरा

मेरी इच्छा पूरी हो गई,चाहे फांसी दो लटका।

मातभूमि की सेवा में,गर मैं रस्सा चूम लिया

और बड़ा सम्मान मेरे लिये,हो ही क्या सकता ?

जज ने लिख दिया फैसला, दी सजा-ए-मौत सुना

सुनकर जज का फैसला,शेर पड़ा मुस्करा।

31 जुलाई 1940,पेंटोविले जेल

40 साल 7 महीने 5 दिन की उम्र में, हो गया मौत से मेल।

सात समुद्र पार योद्धा,फांसी दिया चढ़ा

लाज बचा ली देश की,खुद गया शहीदी पा।

धन्य है वो सूरमा,धन्य उसके मात-पिता

हम भारतीय कैसे उस वीर का,कर सकते हैं कर्ज अदा ?

--एस.दयाल सिंह--



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