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S.Dayal Singh

Abstract

4  

S.Dayal Singh

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पिता

पिता

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 घर की होती शान पिता से

इज्जत और सम्मान पिता से

जब सर घर पे संकट आये  

होता  है  निदान  पिता से।


बच्चों   के अरमान  पिता है

बच्चों का आसमान पिता है

पिता न होता  कोई न होता 

हम सब की पहचान पिता है।


संतान संजोए रखती अपने  

पिता से, सब  पूरे हो सपने

पिता बिना ये जगत पराया

पिता से है जग वाले अपने


माना लौह सा गर्म  पिता है

तो भी मोम सा नर्म पिता है

परिवार के दुख-दर्द को 

हरने वाला, धर्म पिता है।


बेचैनी  में जब  होता है 

चुपके चुपके  से रोता है

मन  चिंता  में डूबा रहता

पिता चैन से कब सोता है?

रूखी सूखी खा लेता है

फटे पुराने वस्त्र पा लेता है

घर  पर कोई  आँच न आए

खुद को दांव पे ला देता है।


जिससे  दुनिया बस्ती  है जी

जिससे  मां भी हंसती है जी

जिससे ये  सब  मस्ती है जी

पिता ही वो इक हस्ती है जी ।


पिता  तो  देता  ही देता है

बदले में कब क्या लेता है ?

हर्षित हो  संतान  सर्वदा 

सदा  दुआएं  ही  देता है।


पिता से ही हर मौज है अपनी

दुनिया की हर भोज है अपनी

पिता है  परम-पिता  की मूरत

ईद  दीवाली  रोज  है अपनी।



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