दर्द...
दर्द...
दर्द की क्या है जगह ज़िन्दगी में
जानते हैं हम सभी इसे
पर इस दर्द से निपटेंगे कैसे
कौन सी अपनाएंगे राह
क्या तोड़ देगा दर्द मुझे
या निचोड़ निचोड़ कर सुखाएगा मुझे
या लगवाएगा आंसुओं की झड़ियां
या बुत की तरह कर देगा ख़ामोश
या कुंठा और नैराश्य से मायूस
झगड़ालू बना देगा मुझे
कर देगा मुझे अपनों से दूर
समझने लगूं दुनिया भर को अपना दुश्मन
या पढ़ूंगी अपने दर्द का चिट्ठा
अपनों और परायों के आगे
जिसे सुन सुन कर हो जाए
हर कोई मुझसे उदासीन
जिसे सुन लोग कहें
दर्द का क्या है
है यह आनी जानी
भूल जाओ यह किस्सा कहानी
मेरी आंखों की नमी
पहुंचे मेरी आंखों तक
उस से पहले ही
जाती है सूख
सीख लिया है मैंने जीना
दर्द की आंखों में आंखें डाल
अब वो हर दिन पूछे है
मुझसे मेरा हाल
दोस्त बन गए हैं हम
मेरा दर्द मेरी आंखों तक पहुंचे
नमी बन कर, उस से पहले ही
सोख लेता है दर्द उसे
दर्द से लगता नहीं अब डर
न है उससे शिकवा शिकायत
अब जुड़ गया है रिश्ता उस से
हो गई है दोस्ती की शुरुआत।