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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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क्या नाम दूँ

क्या नाम दूँ

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क्या नाम दूँ

तुमसे अपने रिश्ते का

मेरे हमसफ़र

हम साया,अजीज

सर्वब्यापी

क्या नाम दूँ।


अब एक नाम भी नहीं दे सका

तो खुद को क्या कहूंगा,

तुम्हारी कृतज्ञता

तुम्हारी मेहरबानियां,रहमतों

की जीवन मे चलती हुयी

अनगिन कहानियों

घटनाओं का जिक्र

रह जायेगा न होने के लिये संदूषित

मेरे ब्रह्मांड के

घने अंधेरे संसार में

बस एक नाम न दे पाने से।


बदनाम भी तो कोई

बिना नाम के नही होता

ऐसा दस्तूर ही है हमारी दुनिया का।


फिर नाम के लिये तो

कोई नाम होना ही चाहिये

अन्यथा बहुत कुछ होकर भी

अनछुआ हो जाएगा।


तुम संग मेरा योग

संयोग भर रह जायेग

जीवन मे तुम्हारी शास्वत उपस्थिति

एक हादसा भर रह जायेगा।


ठीक ऐसे ही हालात में

जाने कितने लोगों ने

जाने कितने नाम दिये हैं तुम्हारे

उन नामों के किस्से हैं

शास्त्र हैं,ग्रन्थ हैं, प्रकृति है

आस्था है विश्वास है श्रद्धा है

नाम के लिये नाम तो

होना चाहिये

तुम्हारा होने के लिये भी

तुम्हारा एक नाम होना चाहिये।


चलो एक नाम दें

मुर्तिजन्या,

तुमने मूर्ति की सीमाओं को तोड़कर

जीवन मे रहना पसंद किया

बस तुम्हारी इसी चाहत की प्रतिमूर्ति

तुम्हारी एक नाम

मुर्तिजन्या।


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