सुबह है
सुबह है
सुरेन्द्र कुमार सिंह चांस
सुबह है भाई सुबह है
मुमकिन है
रोज जैसी, न हो
रोज जैसे कि आकाश में
सूरज का उगना
पंछियों की चहचहाहट
और
आदमी की बस्तियों में
कोलाहल
का भर जाना।
दुनिया में आदमी का
अपनी दिनचर्या में
लग जाना
व्यस्त हो जाना।
नई सुबह है भाई नई सुबह है
मन के आकाश में
नए सूरज का उगना है
विचारों के सम्मोहन की ढाल का
पारदर्शी हो जाना है
विचारों का सांझ की तरह
ढल कर रात बनते हुए
सुबह में तब्दील हो जाना है।
अपना होने का खयाल आना है
विचारों के बिस्तर से उठकर
जीवन की तरफ चल देना है
ये कोई चमत्कार
या रहस्य नहीं है
प्रकृति का क्रिया बाजार है
आदमी का खुद से मिलने की
बेताबी है
अपने विचार के साथ जीने की
पहल है।
नई सुबह है भाई नई सुबह है
खुद को अंधेरे में
यथावत छोड़कर
रौशन हो जाना है।
