अक्सर
अक्सर
ख़यालों में बालू की तरह
टटोला कराता हूँ यादों को
ढेर बालू का आंसू से ऊपर ही ऊपर
टीले बने थे अभी धंसे जाते हैं अक्सर I
तुम जीवन धन तुम्हीं से खुशी है
बदल जाती हैं भावनाएं भंवर
कभी तुम में कभी किसी पर
किसे गिनें काफिले बसे जाते हैं अक्सर I
सुना है शबरी के बेर न जूठे होते हैं
सुना है अपने कुछ देर ही रूठे होते हैं I
फिर पीढ़ियां गुजर जाती हैं दो किनारों पर
वक्त की खंजर दिल में धसे जाते हैं अक्सर I
तुम मानो एहसान, न हम मानेंगे
तुम मांगो वक्त से एहसान, न हम मांगेंगे
पत्थर में बदला जो वक्त के थपेड़ों से इंसा
उसके आँखों से आँसू क्यों बहे जाते हैं अक्सर I
