ज़मीं और आसमाँ
ज़मीं और आसमाँ


कभी मिटी है न मिटेगी
युगों युगों तक ये दास्ताँ I
बहुत फर्क़ है इन शब्दों में
ये ज़मीं और वो आसमां।
दोनों में प्राण प्रण समाये
एक नीचे और एक ऊपर।
एक के अंदर ज्वाला धधके
एक दामिनी लहराए दर दर।
वहीं आज है वहीं राज है
चिंगारी लिये वहीं सरताज है I
वह लिख दिया नाम पत्थर पर
उसके हाथों पर हथौड़ा आज है।
वह कसक लिए ,जीता रहा मर मर
उसका आशियाँ क्यों दूर दराज है।
अपने अपनों की कई चिता भर-भर
सिर नोचता ज्यों पुरखों का खाज हैI