मन का आकाश
मन का आकाश
मन के आकाश में
बादलों की आवाजाही है
बिजली चमक रही है
धड़क रही है
डरावनी घड़घड़ाहट है
सोचा बाढ़ आई तो
सोचा और फिर
बना आया
एक बाढ़ रक्षित घर।
भींगने लगा रिमझिम बारिश में
तुम्हारी तरह
फिर आंख मिली तो सोचा
रहने के लिए
इससे सुन्दर घर
कहां मिलेगा।
सोचा तो रहने लगा उसी में
भूल गया अपना बनाया
बाढ़ रक्षित घर।
तबसे अब तक
बहता रहता हूं
तुम्हारे साथ साथ
डूबता रहता हूं तुम्हारे साथ साथ
भंवर में गोते खाता हूं तुम्हारे साथ।
देखता रहता हूं आश्चर्य से
अपनी ही कारगुज़ारियों
मुझे क्या पता कि
जिस्म मेरा है
और मेरी कारगुजारियां तुम्हारी हैं।
