STORYMIRROR

Surendra kumar singh

Abstract

4  

Surendra kumar singh

Abstract

चेहरे पर मुस्कान है

चेहरे पर मुस्कान है

1 min
7

जो खुश थे
उदास हो रहे हैं
जो उदास थे
उनके चेहरे पर मुस्कान है।
 यूं ही शाम ने
सुबह में छलांग नहीं लगा दी है
बहुत कुछ छूट गया है
जो बहुतायत था
बहुत कुछ नजर आ रहा है
जो नहीं था।
बस एक तुम हो
मेरे अजनबी मित्र से
न उदास थे
 न खुश हो
 बस व्यस्त हो सफर में।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract