कलम
कलम
नतमस्तक हो जाता है
जिसके आगे हर इंसान
निष्पक्ष निडर वह लेखनी
रचती है नव छंद विधान।।
कलम की ताकत के आगे
धन दौलत भी घुटने टेके
इसके बल बूते निर्बल भी
अपना हक रहता है ले के।।
जो भी हम करते हैं काम
करती सबका यही बखान
प्रसिद्धि पाते हैं कवि इससे
हैं मीरा तुलसी या रसखान ।।
खोल देती ज्ञान चक्षुओं को
तहलका मचाती चहुं ओर है
डरते हैं जिससे जयचंद भी
यही डालती साहित्य में जान ।।
जयशंकर हों या प्रेमचंद
कवि कालिदास या भवभूति
युगों-युगों से बरकरार है
आज भी कलम की शान ।।
यह साहित्य में रस घोलती
शक्ति और सत्ता है तोलती
अच्छे-अच्छों में भी है ठन जाती
जब कलम विद्रोही, है बन जाती ।।
उथल-पुथल मचा देती है यह
शासन -सत्ता के गलियारों में
होती, अथाह शक्ति समाहित
साहित्य कलम के फनकारों मे ।।
समाज को दर्पण दिखलाए
सही गलत का भेद बतलाए
जब सामना हो अत्याचार से
तो बंदूक़ नहीं कलम उठाइए।।