STORYMIRROR

Kavita Sharrma

Abstract

4  

Kavita Sharrma

Abstract

मेला

मेला

1 min
339

 दुनिया है इक मेला

क्यों है फिर कोई अकेला

इतनी चमक,छाई हैं रंगीनीयां


फिर क्यों हैं इतनी खामोशियां

साथ होकर भी क्यों हैं दूरियां

दिल में है क्यों इतनी बेचैनीयां


ढूंढ़ जो रहे हो तुम खुशियां 

मिलेंगी तुम्हें इस मेले की भीड़ में नहीं

किसी दूसरे के साथ में नहीं

खुद से जब मिलोगे मुस्कुरा कर

खुद को अपना दोस्त समझकर।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract