मेला
मेला
दुनिया है इक मेला
क्यों है फिर कोई अकेला
इतनी चमक,छाई हैं रंगीनीयां
फिर क्यों हैं इतनी खामोशियां
साथ होकर भी क्यों हैं दूरियां
दिल में है क्यों इतनी बेचैनीयां
ढूंढ़ जो रहे हो तुम खुशियां
मिलेंगी तुम्हें इस मेले की भीड़ में नहीं
किसी दूसरे के साथ में नहीं
खुद से जब मिलोगे मुस्कुरा कर
खुद को अपना दोस्त समझकर।