मुझे रिहा कर दो
मुझे रिहा कर दो
मुझे रिहा कर दो तुम हर उस बंधन से
जो बेड़ियां बनकर मेरे कदमों को रोके
मैं भरना चाहती हूं, एक उन्मुक्त उड़ान
और छूना चाहती हूं , खुला आसमान
मेरे हौसले को भूलकर भी मत डिगाना
कोमल मन के बाग में बबूल मत उगाना
आहत कर यह तन मन मेरा कभी भी
ऊष्ण अश्रु धार से आंचल मत भिगोना
मुक्त कर दो मुझे, उस हर एक फ़र्ज़ से
जिसका वास्ता हो मेरे जिस्म मेरे दर्द से
मत कुतरो तुम मेरे इन सुकोमल परों को
पारिवारिक सांचे में हमने,ढाला घरों को
बरसों से जमीं हुई धूल अब छंट रही है
जिम्मेदारियों भी हमारी मेरी बंट रही हैं
आगे बढ़ने का सुअवसर अब आ गया
यह सुंदर संसार मेरे मन को भा गया।।