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Manisha Manjari

Abstract Inspirational

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Manisha Manjari

Abstract Inspirational

जगदम्बा के स्वागत में आँखें बिछायेंगे।

जगदम्बा के स्वागत में आँखें बिछायेंगे।

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जगदम्बा के स्वागत में आँखें बिछायेंगे,

और उन्हीं नज़रों से जाने कितनी स्त्रियों को शर्मिंदा कर जायेंगे।

समाज़ के कुछ ठेकेदार ऐसे भी हैं, जो माँ पे तो हक़ जमायेंगे,

और उनकी हीं बेटियों को, जलती चिता के हवाले कर जायेंगे।


माँ के चरणों में दण्डवत शीश नवायेंगे,

और उसकी परछाईयों को अपने कदमों तले रौंद जायेंगे।

छप्पन भोगों की थाल से माँ को भोग लगायेंगे,

और कितने हीं बेबसों के मुँह से निवाले तक छीन जायेंगे।


आभूषण और वस्त्रों से माँ की मूरत की शोभा बढ़ायेंगे,

और शब्दों को निर्वस्त्र कर, कितनी हीं स्त्रियों का चीरहरण कर जायेंगे।

अपनी भक्ति का प्रदर्शन कर, माँ को दस दिनों तक रिझायेंगे,

और जन्मदायिनी माँ को, वृद्धाश्रम की राह में छोड़ जायेंगे,


अपनी आस्था का दीपक, माता के मंदिर में हर रोज़ जलायेंगे,

पर अपने मन के अंधेरों से, कितने हीं घरों में अमावस कर जायेंगे।

ढोल-नगाड़ों के साथ माँ की आरती, चीख़-चीख़ कर गायेंगे,

और स्त्रियों की आवाज़ दबाने को, उनका गला तक घोंट जायेंगे।


जो स्त्री के अस्त्तित्व को भी नकार जाती है,

क्यों ना इस नवरात्र उस मानसिकता की हीं बलि चढ़ायेंगे।

हर स्त्री उसी माँ का तो अंश-रूप है,

क्यों ना इस बार उनकी संवेदनाओं को स्वयं के हृदय में जगायेंगे।


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