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Manisha Manjari

Tragedy

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Manisha Manjari

Tragedy

आहटें।

आहटें।

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सजदे में तेरे कमी ये कैसी रह गयी,

की आँखों की नमी बड़ी शिद्दत से थमी रह गयी। 

हाथों की लकीरें, तेरी अदाकारी का नमूना बनी रह गयी,

और क़िस्मत की क़िताब पर, धूल की परतें जमी रह गयी। 

ख्वाहिशें उस घर की सपनों में सजी रह गयी,

और तस्वीरें तेरी, किसी संदूक के कोनों में पड़ी रह गयीं। 

मोहब्बत सहमी हुई सी, यादों की बारिशों में घिरी रह गयी,

ज़िन्दगी दर्द में, मुस्कुराहटों के निशाँ ढूंढती रह गयी। 

तेरे हाथों को थामना, एक ज़िद की मिसाल बनी रह गयी,

और अस्थियां तेरी गंगा की लहरों पर डूबती-उतरती रह गयी।

तन्हा शामें आज भी तेरी आहटों को ढूंढती रह गयी,

वो सूरज बुझा यूँ कि, रात सदियों तक जागती रह गयी। 

सूखे पत्तों की शिकायतें खुदा से बस इतनी सी रह गयी,

की रिवायतें जुदाई की क्यों एक डोर से बंधे रूहों के 

सदके में रह गयी।


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