होली
होली
खेल रहे वो खून की होली
हम रंगों से खेलें कैसे
झेल रहें हैं जो गोली उनकी
वामा का दुःख झेलें कैसे।।
हुआ हिमालय रंग हीन वो
जब सरहद ग्रीष्म ऋतु छाई
नदियों का स्वच्छ हो गया
जब लहू बरसा ऋतु आई।।
मार्ग टिका चट्टान बड़ा सा
बोलो उसे ढकेले कैसे।।
सप्त रंग सप्ताश्व रंगा है
किन्तु नहीं कर मेहंदी छाई
दामिनी से आकाश सजा है
किन्तु मांग की लाली रोई।।
सिया गया वीरों का तन
बोलों मुख अपना सी लें कैसे।
धरती पर हैं रंग विरंगे
फूल कूल निर्मूल लताएं
छोड़ रहीं है नग का काया
काम हीन अग चारू शिक्षाएं
वो भूखे जो अपने हैं
बोलो खाएं अकेले कैसे।।
इस मिट्टी में रंग रंग के
लहू अनेक हैं रमते जाते
उन्हें मिला है जीवन प्यारा
जो दूजे का कभी न खाते।।
मौन हुई दिलवारो से
हम बोलो युद्ध मचा ले कैसे।।
