STORYMIRROR

आशीष पाण्डेय

Abstract Classics Fantasy

4  

आशीष पाण्डेय

Abstract Classics Fantasy

सीप

सीप

1 min
308


वहां पर सूरज नहीं डूबा था

जहां शशि हुआ 

शून्य नहीं था हृदय

हा प्रणय।।


लुपलुपा रही थी दीप ज्योति

वह ऊपरी दीप जलाता है

दोनों के प्रकाश में 

रमता रहा सीप ।।


घनघोर निशाई थी

हृदय में कमल खेला

एक नहीं निकला था भृंग

और ऊपर मिला।।


जल समतल कोमल

थल पर बहते रहे

आश्चर्य हा वह दर्द

नयन कैसे सहे।।


कैसे दो दिशा-निर्देश

क्षितिज स्मृति करता है

कैसे सागर नदिया से

बादल जल भरता।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract