बहुत देर से आता हूँ
बहुत देर से आता हूँ
वचन सभी गली को करोड़ों मील जाता हूं।
हमेशा देर करके मैं बहुत देरी से आता हूं।
भरी आंखों की ज्योति जो निहारा नित्य करती है।
बिना रंगव के जो कोंकिल कहाला नित्य करती है।
डेको को चरण उसे बहुत देरी से पाता हूं।।
करों में रंजिका सजती है सज कर छूट दी जाती है।
अधर की जिम्मा दिनकर को हर कोई डूब जाता है।
जो करे याचना उसे बहुत देरी से लाता हूं।।
करोड़ों वेदना सहकर जो मेरी वेदना हर ली।
अधूरी रागिनी को भी हमारा मान स्व कर ली।
उसे कोमल हृदय के पुष्प विलंब से चढ़ाता हूं।
वक्ताओं से जो कोमल है सुमन का रुप दूजा है।
हृदय की अनवरत धारा प्रणय का शब्द पूजा है।
बहकर रक्त पग से सुम मैं विलंब से रखता हूं।।
आशा जब निराशा बनके करती है शून्य चेतना।
जलाती दीप द्वार पर मिलन का दीप है बुझता।
सजावट को मैं कर रहा हूं बहुत विलंब सलाने वाला हूं।।
समेटो मैं कहूं कितना होता हूं न दुख उसके
सभी दी सुख अपना मिला उसे न उसका सुख
भीगाकर अश्रु से आंखें ये अंतिम गीत गाता हूं।।