सद्गति अम्माॅं की
सद्गति अम्माॅं की
अम्माँ....
भगवान भी जब अपनी मृत्यु स्वीकारी
तो उनकी मृत्यु में भी कष्ट था भारी
वो तो अपनी इच्छा से इस योनी में आये
उनकी कौन सुनता वो तो थे कर्ताधारी ,
अम्माँ....
लेकिन उन्होंने तुम्हारी सुनी
तुम आसक्त हो बिस्तर पर ना पड़ जाओ
इस चिंता में चिंतित हो गये विधाता भी
बोले तुमसे अब जल्दी से मेरे पास आओ ,
अम्माँ....
सबकी चुनौतियां तुमने स्वीकार कीं
तुमने ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जी
खाना - पीना पहनना सब नियम से
घड़ी की सुइयों के हिसाब से की ,
अम्माँ....
तुम्हारे संयम तुम्हारी पाबंदियों ने
तुमको इतनी हिम्मत और ताकत दी
इस उम्र में भी देखो तुमने
बेमुरव्वत महामारी को भी मात दी ,
अम्माँ....
उस वक्त जाती तो हम सब ना आ पाते
तुमने तो अपना जाना आगे बढ़ा दिया
हम सब तुमको देख सकें और छू पायें
तुमने मृत्यु को इच्छा मृत्यु में बना लिया ,
अम्माँ....
तुम तो ऐसे गई मौत को भी पता ना चला
अपनों की आँखें खुली की खुली रह गई
तुमने अपनी आँखें बंद कर लीं
और खुद चुपचाप आराम से लेट गई ,
अम्माँ....
अब तुम परमधाम जाकर बाबू से मिलो
हम सबका हाल - चाल बाबू को कहो
दिव्यधाम का तुम परम सुख लो
हम सब के हृदय में तुम जीवित रहो ।
