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Mamta Singh Devaa

Tragedy

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Mamta Singh Devaa

Tragedy

निर्मोही बरखा

निर्मोही बरखा

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ये कैसी निर्मोही बरखा है

इसने सब मोह पानी में दे पटका है ,


कुछ दिन पहले ही तो छाई थी छत

कैसे संभलेगी मूसलाधार में इस वक्त ,


जमीन तो पहले ही भर गई है जल से

भरना पड़ेगा बच्चों का पेट अब छल से ,


ये झमझम बरसती सावन की बूंदों को देख

मन तो खुश होता है भरते है जब खेत ,


एक तरफ ये पानी भरता है पेट 

दूसरी तरफ ये पानी काटता है पेट ,


क्या करें जीवन मझधार में है

हमारा भविष्य इन मेघों की धार में है ,


कम बरसें तो सूखे रहें भूखे रहें 

ज्यादा बरसने का दुख किससे कहें ,


कैसी विपदा के मारे हम निर्धन किसान हैं

हमारी तो आस बस उपर बैठा भगवान है ।



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