तब बनके अश्क़
तब बनके अश्क़
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"जब अकेलेपन में हमें याद करोगे,
जब किसी की बात में, मेरी बात करोगे,
जब ख़्वाब तेरे नींद में हमको बुलाएंगे,
तब बनके अश्क़ हम तेरी आँखों में आयेंगे।
जब ख़्वाब में डूबी कभी तुम गीत गाओगी,
जब कभी साँसों में कोई राग लाओगी,
जब तेरे ये लब अकेले गुनगुनाएंगे,
तब बनके अश्क़ हम तेरी आँखों मे आयेंगे।
जब कभी शबनम की बूंदें तुझ पे आयेंगी,
जब हवाएँ थक के कुछ बहार लायेंगी,
जब कभी फूलों पे जुगनू टिमटिमायेंगे,
तब बनके अश्क़ हम तेरी आँखों मे आयेंगे।
जब आसमाँ पर तुम कभी सर को उठाओगी,
जब चाँद की चाँदनी से नज़रें मिलाओगी,
जब टूटते तारे मेरा पैग़ाम लायेंगे,
तब बनके अश्क़ हम तेरी आँखों मे आयेंगे।
जब आईने में तुम कभी चेहरे को देखोगी,
जब लटों को कान के पीछे घुमाओगी,
जब तेरे काज़ल को सूखे नैना न भाएंगे,
तब बनके अश्क़ हम तेरी आँखों में आयेंगे।
जब चाहतों के फूल न तेरे हाथ आयेंगे,
जब देखकर चेहरा तेरा वो मुंह घुमाएंगे,
जब टूटते पत्ते हवा में सरसरायेंगे,
तब बनके अश्क़ हम तेरी आँखों मे आयेंगे।
जब बारिशों में तुम कभी ख़ुद को भिगोओगी,
जब साथ तुम सखियों के अपने गीत गाओगी,
जब आके सब सावन के झूले झूल जायेंगे,
तब बनके अश्क़ हम तेरी आँखों मे आयेंगे।
जब दुआ में हाथ तुम अपने उठाओगी,
जब ख़ुदा के हक़ में, अपने हक़ जताओगी,
जब रूठ कर तुझ से फ़रिश्ते दूर जायेंगे,
तब बनके अश्क़ हम तेरी आँखों में आयेंगे।
जब रौशनी के तुम दीये घर में जलाओगी,
जब उजाले में न खुद को देख पाओगी,
जब अंधेरे ही तुझे रास्ते दिखायेंगे,
तब बनके अश्क़ हम तेरी आँखों में आयेंगे।"