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Sameer Faridi

Romance

4  

Sameer Faridi

Romance

इश्क़ करा दे !

इश्क़ करा दे !

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"क्यों उसको याद करता हूँ, हर लम्हा, हर कहीं ?

क्यों उसको महसूस करता हूँ, हर लम्हा, हर घड़ी ?

क्यों उसकी ज़ुल्फों के मंज़र, निगाहों से नहीं हटते ?

बग़ैर कर याद उसको क्यों मेरे रस्ते नहीं कटते ?

क्यों एक उलझन सी होती है, वो जब-जब दूर जाती है ?

और फिर क्यों बढ़े धड़कन, वो जब नज़दीकी आती है ?

मेरी इस बेकरारी को ख़ुदा तू और बढ़ा दे,

है रब्बा इश्क़ ग़र मुझे, उसे भी इश्क़ करा दे ।


बड़ा बेचैन रहता हूँ, नहीं कटती हैं अब रातें,

कोई भी बात करता हूँ, वही आ जाती हैं बातें,

नशा छा जाता है दिल में, अदा भी खूब भाती है,

झटक कर ज़ुल्फ़ काँधे पर, वो जब अपने गिराती है।

ये कैसा द

र्द है जिसमें सुकून मिलने लगा मुझ को,

न जाने क्यों नहीं हो पा रहा एहसास ये तुझ को ?

जो है एहसास मुझ में, ऐ ख़ुदा ! उसमें भी जगा दे,

है रब्बा इश्क़ ग़र मुझे, उसे भी इश्क़ कर दे।


है एक तस्वीर क्यों उसकी, मेरे दिल मे लगी बसने ?

लबों के साज़ उसके क्यों लगे कानों में हैं बजने ?

बड़ी शिद्दत से मेरा दिल, उसे क्यों देखता रहता ?

रहे ख़ामोश पर ऐसा लगे कुछ मन में है कहता ।

क्यों उसको देखता हूँ ? क्यों उसमें है खोने को जी करता ?

क्यों उसको सोचता हूँ ? क्यों उसको पूजने को जी करता ?

है मेरे दिल में जो जलता, दिया वो उसमें जला दे,

है रब्बा इश्क़ ग़र मुझे, उसे भी इश्क़ करा दे।"


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