इश्क़ करा दे !
इश्क़ करा दे !
"क्यों उसको याद करता हूँ, हर लम्हा, हर कहीं ?
क्यों उसको महसूस करता हूँ, हर लम्हा, हर घड़ी ?
क्यों उसकी ज़ुल्फों के मंज़र, निगाहों से नहीं हटते ?
बग़ैर कर याद उसको क्यों मेरे रस्ते नहीं कटते ?
क्यों एक उलझन सी होती है, वो जब-जब दूर जाती है ?
और फिर क्यों बढ़े धड़कन, वो जब नज़दीकी आती है ?
मेरी इस बेकरारी को ख़ुदा तू और बढ़ा दे,
है रब्बा इश्क़ ग़र मुझे, उसे भी इश्क़ करा दे ।
बड़ा बेचैन रहता हूँ, नहीं कटती हैं अब रातें,
कोई भी बात करता हूँ, वही आ जाती हैं बातें,
नशा छा जाता है दिल में, अदा भी खूब भाती है,
झटक कर ज़ुल्फ़ काँधे पर, वो जब अपने गिराती है।
ये कैसा द
र्द है जिसमें सुकून मिलने लगा मुझ को,
न जाने क्यों नहीं हो पा रहा एहसास ये तुझ को ?
जो है एहसास मुझ में, ऐ ख़ुदा ! उसमें भी जगा दे,
है रब्बा इश्क़ ग़र मुझे, उसे भी इश्क़ कर दे।
है एक तस्वीर क्यों उसकी, मेरे दिल मे लगी बसने ?
लबों के साज़ उसके क्यों लगे कानों में हैं बजने ?
बड़ी शिद्दत से मेरा दिल, उसे क्यों देखता रहता ?
रहे ख़ामोश पर ऐसा लगे कुछ मन में है कहता ।
क्यों उसको देखता हूँ ? क्यों उसमें है खोने को जी करता ?
क्यों उसको सोचता हूँ ? क्यों उसको पूजने को जी करता ?
है मेरे दिल में जो जलता, दिया वो उसमें जला दे,
है रब्बा इश्क़ ग़र मुझे, उसे भी इश्क़ करा दे।"