इश्क़ का पता
इश्क़ का पता
सदियों से इश्क़ है हमको उनसे,अब वो हम से हमारी उम्र पूछते है!
ज़िन्दगी गुज़ार दी हमने उनकी गलियों में,
अब वो हमसे हमारे घर का पता पूछते हैं!
कह दो कोई जाकर उनसे इश्क़ की उम्र नहीं होती,
वो तो सारी उम्र जवान होता है!
कह दो कोई जाकर उनसे मोहब्बत महलों में नहीं रहती,
इश्क़ तो बस दिल के मकान में बसता है!
मेरी मोहब्बत पुकारती ही रही,
पर तुम्हारे इश्क़ का जवाब न आया?
बंजर नहीं थी मै,आँखों में समन्दर था!
बस इश्क़ बयां न कर पाई,
और मौज़ों में खो गई मै!
मलाल तो बस इतना ही है,
कि तु मेरे इश्क़ को पहचान न सका!
और ज़माना मेरी आँखों में तेरा इश्क़ पढ़ता रहा!
तुमने चुन लिया है हम सफ़र अपना,
हम समन्दर की रेत में अपना इश्क़ ढूँढते है!
सीप समझ कर,सागर ने लिया अपनी पनाहों में,
सीप बन कर भी हम अपने इश्क़ का मोती ढूँढते हैं!
सदियों से इश्क़ है हम को उनसे,
अब वो हमसे हमारी उम्र पूछते हैं?

