मॉं कहूँ या भगवान
मॉं कहूँ या भगवान
मॉं बिना इस दुनिया में कोई मुकम्मल नहीं होता!
होती है जहां मॉं वहाँ, भगवान भी मॉं से बड़ा नहीं होता !
कामयाबी की गोद में बस मॉं बिठातीं है!
इक मॉं ही है जो अपने दूध से नई रचना सजाती है
लोरियों से पाठ और कहानियों से संस्कार सिखातीं है!
उँगली पकड़ कर चलने से, लेकर ज़िन्दगी के सबक
बतलातीं है!
मुक़द्दर लिखने का नहीं दिया भगवान ने किसी भी मॉं को,
इसलिए वो ख़ुद की पाठशाला में ज्ञान के दीप जलाती है!
राह में अंधेरा हो तो दीप जलाएँ कैसे?
जीवन हो संघर्ष तो विजय पाए कैसे? माँ सिखाती है!
आज बड़े हो कर मॉं से दूर ज़रूर रहते हैं!
उसके पाठ आज भी रास्ता दिखाते हैं!
पहली सबक़ ज़िन्दगी का गिर गिर कर उठना,
गिरने का दर्द बताता है!
दूसरा सबक हार न मानना,
ज़िन्दगी जुनून है सीखता है!
तीसरा सबक़ है ममता की गाथा ,
प्रेम, बन्धुतव, सौहार्द, क्षमा करना सीखता है!
चौथा सबक उम्मीद, ख़ुद पर यक़ीन,
प्रेम भक्ति, दो सब को मान सम्मान सीख मॉं से पाईं
माँ एक और रूप अनेक
ममता कहूँ, प्रेम कहूँ, शील कहूँ, सहिष्णुता कहूँ,
विधा कहूँ, ज्ञान कहूँ, मान कहूँ ,सम्मान कहूँ, सौन्दर्य कहूँ ,
सौम्यता कहूँ, भक्ति कहूँ, शक्ति कहूँ , वीणा कहूँ, संगीत कहूँ,
अन्नपूर्णा कहूँ, जया कहूँ या विजया कहूँ
या फिर मॉं मेरी मॉं प्यारी मॉं कहूँ!
आज माँ बुढी हों चली है क़दम चलने पे लड़खड़ाते है
चलो जहां रूक गए हैं मॉं के कदम हम अपना स्वर्ग वहीं
बनाते हैं!
पूज्य माता को समर्पित मेरे सुमन अर्पण