मोहब्बत की रस्म
मोहब्बत की रस्म
मोहब्बत की ज़रा पहली रस्म याद कर,
अदब से झुका लो पलकें, फिर आँखों से बात कर ।
महफ़िलों का दौर है सनम,
ज़रा झुकीं झुकी नज़रों से बात कर ।
ज़माने को देर नहीं लगती फँसाना बनाने में,
न कर मुझे भरी महफ़िल में यूँ रूसवां,
ज़रा तन्हाइयों में मिल के बात कर ।
आईने में देख कर मेरी सुरत हो गए हो हैरान
ज़रा होले से मुस्कुरा दो फिर लबों से बात कर ।
दबे दबे पाँवों से तेरा मेरी छत पर कुदना,
मैं आ गई हूँ छत पर अब अपने चाँद से बात कर।
क्यूँ जला रहे हो चौखट पर दिये ऐ सनम,
क्षमा जल रही है होले होले से जरा परवाने सी बात कर।
बेन्तहा प्यार है और इश्क़ की खुमार है,
ग़र तो है प्रेम की सौदागर, ज़रा खरीददार से बात कर।
रूह और दिल की फ़ितरत है धड़कना,
तू समा जा मेरी रूह में, फिर धड़कनों से बात कर।
हज़ारों ख़ामियाँ है मुझ में और मेरे इश्क़ में,
ग़र मोहब्बत सच्ची तो मेरी खूबियाँ आबाद कर।
मैं बह रही हूँ अब इश्क़ में तेरे कही,
कतरा कतरा तू मुझ में अपने हुस्न को तलाश कर।

