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SUMAN ARPAN

Romance

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SUMAN ARPAN

Romance

हिसाब मोहब्बत का

हिसाब मोहब्बत का

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न माँग मुझ से हिसाब,तु मेरी मोहब्बत क

!दोस्ती के नाम पर,इश्क़ बेपनाह कर बैठे!

उन्हें बड़ा गुमान था अपने हुस्न पर,

और हम उन्हें इश्क़ की मूर्त समझ बैठे!

सुबह शाम हम करते रहे सजदा,

सजदे को वो हमारे दिल्लगी समझ बैठे!

 न माँग मुझ से हिसाब तु,मेरी शिकायतों का !

हम गजल समझ कर लिखतें रहे शायरी,

दिल्लगी में अपनी वो क़लम हमारी तोड़ बैठे!

 लव्सो में कैसे लिखूँ ,मैं बेचैनियाँ दिल की,

पन्ने इश्क़ की किताब के सारे आँसूओ से धो बैठे!

नसीब की स्याहियों के आगे,

दिल की गहराईयां हार जाती हैं!

क़िस्मत की लेखनी के आगे,

आज इश्क़ अपना हम हार बैठे!

ख़ुद की क़ीमत का हमें न अन्दाज़ा था !

दिल की बाज़ी में हम जान अपनी हार बैठे!


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