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SUMAN ARPAN

Abstract

3  

SUMAN ARPAN

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ख़ुद्दारी

ख़ुद्दारी

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क़िस्सा उनकी ख़ुद्दारी का सरेआम हो गया!

तूफां भरा था जो मंजर उनके नाम हो गया!

किरदार मिल गया पत्थर का बस मूर्त हो गया!

दौर बुरा था,मगर हौसले टुटे नही,झुकना उनको नामंज़ूर हो गया!

न वो पिघला,न वो बदला,बस बुत हो गया!

न वो रोया न वो मुस्कुराया बस ख़ामोश हो गया!

किरदार मिल गया .......

छोड़ दिया तख़्तोंताज,झोपड़ी में किया राज!

न डर बदनामियों का,न मशहूर होने की आरज़ू,

न यक़ीन,न उम्मीद,न आस,न ही कोई अरमां,

सागर जैसे सीने में एक तूफां शांत हो गया!

किरदार मिल गया.......

अमीरी की नहीं ,ज़मीर का सौदागर है!

शौक ख़ुद्दारी वफ़ा और ईमान कैसे हारता?

महलों का नीलाम होना मन्जूर हो गया!

किरदार मिल गया.....

किसी रियासत का था वो बादशाह गुलाम कैसे हो गया?

शाख़ से गिरा है फूल बेनूर कैसे हो गया ?

रात की मुट्ठी मे सवेरे है ,अन्धेरे से जंग का दस्तूर हो गया!

दफन हुए हैं सपने जहाँ,उन गलियों का सिकन्दर हो गया 

किरदार मिला है पत्थर का बस मूर्त हो गया!



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