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SUMAN ARPAN

Others

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SUMAN ARPAN

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वक़्त

वक़्त

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वह न रूकता है, न ठहरता है!

हाथ नहीं आता है बस चलता जाता है!

न उसका कोई आदि है न उसका कोई अन्त

एक नज़र सबको देख रहा राजा हो या रंक

क्या छोटा और कौन बड़ा है उस को नहीं परवाह 

नामी और गिरामी पल में धराशायी उसके आगे 


घुटनों पे बैठे कई सिकन्दर मोहलत उससे माँगे

वो सुनता नहीं किसी वो तो मनमौजी है 

किसी को उसने ताज पहनाया,

किसी को दर दर का भिखारी!

कहीं बना वो मर्यादावान पुत्र 

कहीं केशों खींच सभा में लज्जित हुआ 

वह हारता नहीं न पराजय को जानता है 

काल के चक्र और कुचक्र में दौड़ता रहता है 

 

न जीवन है न मृत्यु न जय है न पराजय 

सब कुछ उस ज्ञात हैं विधि का चक्र उसके हाथ

न आशा है न उसे अवसाद है

सागर से भी गहरा है आसमाँ से भी विशाल 

कभी चले गति पवन की कभी चींटी सी चाल 

कभी वो संभव कभी असंभव 

कभी वो विधि कभी वो विधान

वक़्त जी हाँ है जिसका नाम 


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