आख़री चिट्ठी
आख़री चिट्ठी
जीवन कीं पहली और आख़िरी चिट्ठी मेरी सन्तान के
नामजीने का हक़ नहीं मुझ को ऐ मेरी सन्तान,
कोख से जन्मा था,हज़ारों रंग बिरंगी ले कर ख़ुशियों के अरमान
तुम्हारी हर ज़िद पर,ख़्वाबों पर,ख़ुशियों पर बलिहारी जाती हूँ
बेवा, लाचार अभागिनी हो कर भी गर्वित मॉं कहलाती हूँ
तुम्हारी परिवरिश की ख़ातिर वक़्त के थपेड़ों से जीत आती हैूं
दुनिया कर ले लाखों ज़ुल्मों सितम मेरे पैरों की धूल है
मेरी सन्तान मेरे सर ताज हमेशा मेरी ऑंखो का नूर है
पिता की कमी आज तलक महसूस न होने दी
तुम पढ़ लिख कर क़ाबिल, नेक और महान इन्सान बनो,
बस यही मेरी परवरिश और यही अरमान है
जिस दिन कुछ बन जाओगे,सोचा था रूखसत हो जाऊँगी
फ़र्ज़ अपने निभा कर ,कर्तव्य पथ पर बढ़ जाऊँगी
पर दुर्भाग्य का कुचक्र हमेशा मेरे साथ ही छल करता है
दुनिया से नहीं मैं आज ख़ुद से मैं हार गई
वक़्त की दहलीज़ पर धौखे की बिसात पर दौलत सारी हार गई
बिना व्यापार बिना रोज़गार कैसे चले परिवार
बच्चों के क्या मुख दिखलाऊँगी ?
कैसे उनकी ख़्वाहिशों को अनदेखा कर पाऊँगी ?
दुध पीता था जब पिता का साया तक़दीर ने छीना था
आज ताया ने धोखे से व्यापार छीना है
कैसे मेरे मुख से निवाला निकलेगा ,
आने वाला कल ,बिन पैसे कैसे गुजरेगा
पति के बड़े भाई के जुते पर उसने रगड़ें नाक
जिसने सिर्फ़ भगवान को शीश नवाया था
बेटी बन जब कभी पिता के मस्तक का ग़रूर थी
सन्तान की ख़ातिर कैसे मिटने के मजबूर थी
झोली फैला कर बोली माँ मुरे बच्चों के मुख से निवाला न छीनो
पैर हटा कर पति पत्नी दोनों बोले चाहे कुछ हो जाए ,
अब कुछ न लौटाया जाएगा
दस्तख़त करने से पहले पढ़ना था,फ़ैसला न बदला जाएगा ?
चुपचाप खड़ी हुई मैं और पोंछे मैंने आँसू ?
क्या कहूँ मैं बच्चों से तुम्हारी गुनाहगार हूँ मैं ?
तुम्हारा हक़ तुम्हारे अपनों ने लुटा है
या मेरी बदनसीबी का तुम पर काला साया है ?
अब इतनी विनती है तुम बहन नहीं मॉं बन जाना,
भाई छोटा है ममता उस पर लुटाना
माना तुम छोटे हो तुम पिता बहनो के बन जाना
बहनों की रक्षा और कन्यादान का फ़र्ज़ निभाना
गुनाहगार हूँ तुम्हारी और माफ़ी के काबिल नहीं
जीने का हक़ नहीं मुझ को हो सके तों भूल जाना
आज तक ज़माने की धूप से बचा कर रखा है
दुनिया में कोई अपना नहीं है
इसलिए भगवान के हवाले कर के जा रही हूँ
मरने के बाद भी तुम्हारे संग रहूँगी
पर तुम्हारे हक़ के निवाले पर मैं ज़िंदा न रहूँगी
ख़ुश रहो आबाद रहो फूलों फलों
नींद के आग़ोश में वौ हमेशा के लिये सो गई।