कतरा कतरा इश्क़
कतरा कतरा इश्क़
कतरे कतरे में इश्क़ था ,
रूह में मेरी समाया हुआ!
मगर ख़ामियों का ज़िक्र
मेरी वो ज़माने से कर बैठे!
छोटी सा था मेरा ख़्वाबों का आशियाँ!
मगर वो मेरा घरौन्दा सारा,
तिनका तिनका कर बैठे!
नज़र मिला कर नज़रअंदाज़ करने,
उनकी की अदा बड़ी कातिल थी!
हम उनकी इस कातिल अदा पर,
नींद और चैन गँवा बैठे!
मैंने दर्द भी उन्हें और दवा भी उसे माना था!
मगर मोहब्बत की बजाए,
वो नमक हमारे ज़ख़्मों पर लगा बैठे!
डर नहीं है मुझे अपनी मोहब्बत खोने का,
चर्चा हमारी जुदाई का वो सरेआम करबैठे !
अफ़सोस हमें तूफ़ान के आने का ना था!
पतवार थी जिनके हाथों में वो कश्ती हमारी डुबो बैठे!
मैं कोयल की तरह पिया पिया पुकारती रही
वो सैयाद से हमारी वफ़ा का सौदा कर बैठे!
फिर क्या?
कतरा कतरा अश्क,कतरा कतरा लहूँ,कतरा कतरा इश्क़ !
सब बह गया!

