दिल के पन्ने !
दिल के पन्ने !


तुम्हें भूलने की कोशिश... दिल से.. कई बार की...
कमबख्त ! दिल ही हर बार आगे आया, मैं तुम्हें भुला ना पाया ।।
जब-जब तुम्हें भूलने को दिल को समझाया...
तुम्हारे साथ बीता हर लम्हा, दिल ने ही याद कराया ।।
अब इस दिल को मैं कैसे सजा दूं ...या फिर दुआ दूं..
ये दिल भी तो है तुम्हारा, जिसे मैंने आज तक रखा है संभाला ।।
घुटन , दर्द , चीस, कसक अब भी वैसे ही हरी...जैसे हो तुम्हारी हंसी..
इस हंसी के बहाने, दिल जो चाहता था सुनना वह तुमने कभी नहीं कही ।।
खैर..चेहरे पर अब हम भी हंसी का नकाब ओढ़े हैं...
यह अदा भी तो तुम्हारी है..
जिसे हम आज तक सहेजे हैं ।।
जानते हैं कि अब पहले जैसी मुलाकात शायद ही कभी हो..
लेकिन , पूछना अपने दिल की धड़कनों से..
क्या दिल का कुछ हिस्सा..
आज भी धड़कता है मेरे लिए।।
हो सकता है मेरा प्यार अब एक तरफा लगे,
लेकिन अब यह एक तरफा प्यार ही मेरी सबसे बड़ी दौलत है...
अब मेरे पास भी पैसा, दौलत और दुनिया की सबसे बड़ी
शोहरत है ।।
दिल को लाख बार समझाता हूं, लेकिन यह कमबख्त
बार बार टूटता, रूठता, और मान जाता है...
दिल के पन्नों पर लिखा 'विवेक' प्यार ही है ,
जो हंसाता, रूलाता, रूठाता और फिर हंसाता है ।।