श्याम बदरा
श्याम बदरा
सावन का महीना आया,
श्याम बदरा बरसे चारों ओर।
झूले पड़ गए वृंदा वन में,
झूले राधे संग नन्द किशोर।
देख बृजवासी अति हर्षाए,
दोनों हैं रूप लावण्य के खजाना।
बादल रहें हैं गरज,
बिजली विद्युत सी रही चमक।
वर्षा पानी बरस है रही,
जोश भरे हैं बेशूमार।
पुरवाई हवा गजब की मादक लगे,
आनंदों की मानो सागर कंचन है आई।
श्याम जी बड़े ही निराले अंदाज़ में,
बांसूरी की धुन को छोड़ रहे।
राधा खूब सूरती की देवी सी सजी,
मग्न हुई श्याम संग मतवाली है हुई।
सारे बृजवासी भी अद्भुत ढंग से,
राधा-श्याम संग खुशी से विभोर हुए।
सावन का महीना मानो,
सारे रंजों-गम को भुलाने आया हो।
अम्बर और धरा बीच बरसात के संग,
सिर्फ़ प्रेम की माहौल रही है बरस।
कृष्ण-मुरारी के अनोखे हैं अंदाज़,
उसपे राधा प्यारी की है कातिल मुस्कान।
साथ दे रहे वृन्दा वन के सारे पशु-पक्षी,
और बृज के वासी जो सरलता के हैं प्रतिक।
वाह-वाह के शब्द देवलोक में,
भी गुंजायमान हैं हो रहे।
दृश्य ये अलौकिक देख कर,
स्वर्ग की अप्सराएं भी है तरस रही।
इंद्रदेव भी प्रसंशा के पूल बांधने लगे,
इंद्राणी जिज्ञासित भाव से मचलने लगी।
ऊपर से कोयल की सुरीली आवाज़,
सावन के इस दृश्य को अति लोमहर्षक है बनाती।
मोर पंख के साथ बेजौड़ नृत्य करे,
सब जीवों को भरपूर खुशी है देते।
पपिहा भी पीछे नहीं है हटी,
डटकर वह भी मधुए रस रही है घोल।
दिलों में सबके सिर्फ़ प्रीत उमड़ रही,
देख हरी वादियों को झूम रहें हैं।
काले बादल आसमान पे आते-जाते,
धरती वासियों को खूब हैं ललचाते।
राधे-श्याम में मग्न हो गई,
प्रजा सारे प्यार में मग्न हो गए।
ग्वालों का वह अठखेलियां,
बंशीधर कभी भूले से भी न भूले।
राधा की सारी सखियां,
राधा से करती स्नेही हसी।
ये सखियां न होकर मानों,
उस समय की श्रृंगार ही हो।
क्योंकि सखियों से समा सौंदर्य हुई,
गुआलों से सावन के झूले रंगीन हुई।
सावन आया -बादल छाया,
बोल-बम से दुनिया जगमगाया।
सोमवार से सोमवारी हुई,
नर-नारी सब भक्ति में रम गए।
जलाभिषेक की तैयारी जोड़ों पर है,
कांवरियों में उत्साह उमंग तेज है।
सावन का पवित्र मास अतुलनीय है,
तीनों लोक में भी प्रशंसनीय है।

