मुक्तक छंद
मुक्तक छंद
बहर:_2122,2122,2122,212
मिसरा:_क्या सुधा भी हर सकेगी आज मेरी पीर को
मैं चला हूं अब, सजाने फूल से तसवीर को।
टाल लूंगा श्रम, कड़ा कर नीच सी तक़दीर को।
तुम नगीना हो, खजाने की सजा दी हो मुझे_
खत्म कर दोगी, मजे से यार मेरे पीर को।