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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

वो अजनबी लड़की

वो अजनबी लड़की

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वो अजनबी एक लड़की जो मुझे 

पहली बार फेसबुक पर मिली थी 

बड़ी उन्मुक्त, मदमस्त, बेबाक, जवां 

जूही कली जैसी खिली खिली थी 

भोर की पहली किरण सी अलसाई 

ओस की नर्म नर्म बूंदों सी सरसाई

गुलाब की पंखुड़ियों से कोमल होंठ 

मुस्कुरा दे तो लगे कि शामत आई 


आंखों के रास्ते वो दिल में उतर गई

हिरन जैसी आंखें मन में बस गईं 

कल तक थी एक अनजानी सी बाला 

वो आज दिल की पटरानी बन गई 

ख्वाबों में भी जुदाई सहन नहीं होती 

उसके बिना जीवन की भोर नहीं होती 

धड़कनें सजाने लगती हैं इश्क का साज 

तमन्नाएं जज्बातों के मोती हैं पिरोती 

जब दिल से दिल मिल जाता है "हरि" 

तब एक अजनबी भी अपना हो जाता है 

दिल के गुलशन में खिलता प्रेम का प्रसून 

जो जीवन की बगिया महका जाता है. 


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