प्यार समझ बैठा
प्यार समझ बैठा
दिन ढलते ही
सपनों की दुनिया को,
मैं सच्चा प्यार समझ बैठा,
कांटो से भरी उस क्यारी को,
उपवन के कोमल फूल समझ बैठा,
स्वयं ढो रहा था अपने अरमानों की अर्थी
हाँ अपने अरमानों की अर्थी अपने कंधों पर,
दो कदम चले साथ हमारे, मैं हमसफर समझ बैठा,
करीब वो आए जब हमारे ,मैं उन्हें उनका प्यार समझ बैठा I
काम निकल गया,
और वो हमको भूल बैठे,
लंबा सफर था उनके साथ हमारा,
राहों में हाथ मेरा पकड़ साथ चल रहे थे,
वह चले साथ, मैं उन्हें मंजिल समझ बैठा,
मधुर -मधुर यादें सजाई थी उनके संग हमने,
यादों की वो परछाई भी अब धुंधली सी रह गई है,
यादों की परछाई को मैं आशाओं के फूल समझ बैठा,
करीब वो आए जब हमारे ,मैं उन्हें उनका प्यार समझ बैठा I
हर चांदनी रात में ,
टकटकी लगा निहारता रहा,
करता रहा चमकते तारों से प्रेम,
चांदनी रात में तारों की रोशनी को,
अंधेरे को मिटाता हुआ उजाला समझ बैठा,
जाड़े की धूप जब मन के आंगन में उतर आई,
उन सुनहरे पलों को जिंदगी की बहार समझता रहा ,
सतरंगी सपनों की छाया में सुबह से शाम हो गई और,
करीब वो आए जब हमारे ,मैं उन्हें उनका प्यार समझ बैठा I
भरकर मुझे आगोश में,
मधुर मधुर तुमने सपने दिखाए,
तुम्हारे सपनों को मैं अपना समझ बैठा,
जिंदगी के गीत, गाता, गजल गुनगुनाता रहा,
सभी गिले शिकवे भुला कर तुमसे मिलना चाहा,
और मिलकर हर मुलाकात को विश्वास समझ बैठा,
तुम्हारे एहसासों की हर छुअन में प्यार महसूस किया,
स्पर्श तुम्हारा पाते ही मैं उसे कस्तूरी की महक समझ बैठा,
करीब वो आए जब हमारे ,मैं उन्हें उनका प्यार समझ बैठा I

